हर दिल की यही कहानी है
कुछ पाना है जग में आकर
क्या पाना है यह ज्ञात नहीं,
कुछ भरना है खाली मन में
क्या भरना है आभास नहीं !
जो नाम कमाया व्यर्थ गया
अब भी अपूर्णता खलती है,
जो काम सधे पर्याप्त नहीं
भीतर इच्छाएँ पलती हैं !
कर-कर के भी शमशान मिला
ना कर पाए जो पीड़ित है,
माया मिली न ही राम मिला
हर दिल की यही कहानी है !
था सार्स अभी कोरोना है
सोयी मानवता जाग उठे,
निज सुख खातिर दुःख न बांटें
हर प्राण बचे जो, पाठ पढ़े !
क्यों भीतर झाँक नहीं देखा
वह पूर्ण जहाँ का वासी है,
वह दूजा न ही पराया है
निज भाव स्रोत अविनासी है !
बहुत सशक्त और सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को "भाँति-भाँति के रंग" (चर्चा अंक-3788) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंअति सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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