शब्दों के वह पार मिलेगा
जब खिलेगा भीतर मौन का पुष्प
वहाँ न भावनाओं की डालियाँ होंगी
न विचारों की भूमि !!
शब्दों की नाव तो बनानी ही होगी
जो उतार देगी शून्य के तट पर !
शब्द ले जाते हैं खुद से दूर
शब्द जगत हैं
माया हैं !
सत्य की यदि चाह है
तो उस आग से गुजरना होगा
जहाँ जल जाता है सारा ज्ञान
उस सागर को पार करना होगा
जहाँ दिखाई ही नहीं देता दूसरा तट
सूख जाता है हर सागर
मौन के उतरते ही
बवंडर से गुजर भावों और विचारों के
उस शांति को करना होगा महसूस
जो मिटा देती है सबकुछ
पर जिसके बाद जन्म होता है
एक नवीन सृष्टि का !
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंशब्दों का अपरम्पार अम्बार है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
इस अंबार से पार भी तो जाना है, स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंशब्द ले जाते हैं खुद से दूर
जवाब देंहटाएंशब्द जगत हैं
माया हैं !',,,,,,,।बहुत सुंदर शब्द ही है जो हमें दूसरों से बांधते और अलग करते हैं आदरणीया शुभकामनाएँ ।
स्वागत व आभार !
हटाएंशब्दों से आगे ...
जवाब देंहटाएंशब्दों से आगे या शब्दों से पहले ... भी
हटाएंउत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 09 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंआदरणीया अनिता जी, नमस्ते👏! बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति! ये पांक्तियाँ:
जवाब देंहटाएंजब खिलेगा भीतर मौन का पुष्प
वहाँ न भावनाओं की डालियाँ होंगी
न विचारों की भूमि !!
शब्दों की नाव तो बनानी ही होगी
जो उतार देगी शून्य के तट पर !
हार्दिक साधुवाद!
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ