सोमवार, मई 10

कोरोना काल

 कोरोना काल 

 यह कैसा युग आया है 

मोबाइल से दूर रहो यह कहते नहीं थकते थे जो 

अब उसी के सहारे उनकी पढ़ाई करवा रहे हैं 

निकट न जाओ दादा-दादी, नाना-नानी के  

बच्चों को यह पाठ सिखा रहे है

जब पॉजिटिव होना दुर्भाग्य पूर्ण है 

और निगेटिव होना ख़ुशी की बात 

जब मिलजुल कर रहना है शिष्टाचार के खिलाफ 

 और आपस में दूरियां बनाना 

समझदारी का निशान

पहले बीमार होने पर लगता था टीका

स्वास्थ्य की गारंटी  है अब इसे  लगवाना

आईसीयू में जाना था अति अफ़सोस का कारण 

आज आईसीयू में बेड मिल गया तो 

सन्तोष की साँस लेते हैं परिजन 

कोरोना काल में बदल ही गए हैं 

कितने मूल्य और शिष्टाचार के मापदंड

 परिजन या मित्र की मिजाजपुर्सी तो दूर रही 

अब कोई नहीं जाता मातम मनाने 

कोरोना ने दिए हैं इतने जख्म 

कि भूल ही गए हैं लोग कब बदला मौसम 

कब छाये आकाश पर बादल सुहाने !


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