मंगलवार, मई 18

जीवन तो है इक क्रीड़ांगन

जीवन तो है इक क्रीड़ांगन

जीवन जो उपहार मिला था 

उसे व्यर्थ ही बोझ बनाया,

घड़ी देखकर जगते-सोते 

रिश्तों को भी सोच बनाया ! 


तन-मन जैसे यंत्र बन गए  

अब स्वत:स्फूर्त कहाँ है घटता,  

वही सवाल, जवाब भी वही 

गुम हो गयी उर की सरसता !


नहीं शेष सुवास साँसों में

जब भी वे लघु होती जातीं, 

जितना बड़ा दायरा दिल का 

उतना खुद को वे फैलातीं !


गहराई जब मन में होगी 

होगी गहरी लंबी सांसें, 

भय से भरा हुआ जब अंतर 

कंपन से भर जाती सांसें !


नहीं भूमि यह संघर्षों  की 

जीवन तो है इक क्रीड़ांगन, 

छोटे-छोटे अनुभव मिलते

कण-कण में हो पावन दर्शन !


कुदरत का सान्निध्य अनूठा 

श्रम के स्वेद बिंदु  मस्तक पर, 

जीवन एक खेल बन जाता 

चाह नहीं जब भारी मन पर !

 

13 टिप्‍पणियां:

  1. "कुदरत का सान्निध्य अनूठा

    श्रम के स्वेद बिंदु मस्तक पर,

    जीवन एक खेल बन जाता

    चाह नहीं जब भारी मन पर !"


    बहुत अच्छी बात कही आपने।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (18-05-2021 ) को 'कुदरत का कानून अटल है' (चर्चा अंक 4069) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. बहुत खूबसूरत चित्रण मैम
    कृपया मेरे ब्लॉग को भी पढ़े

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  4. बहुत सुन्दर सन्देश !
    नैराश्य-हताशा के इस वातावरण में यह सार्थक और आशावादी दृष्टिकोण हमको नई से नई चुनौतियाँ का सामना करने का साहस देता है.

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  5. आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है. ऐसे ही आप अपनी कलम को चलाते रहे. Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.

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  6. आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !

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  7. बिल्कुल सत्य कहा आपने,सकारात्मक भावों भरा सृजन ।

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