पूर्ण भीतर पल रहा है
ज्योति जिसकी शांत कोमल
चाँदनी सी बिछी पथ में,
सब तरफ बिखरा उजाला
एक दीपक जल रहा है !
जगत का मंगल सदा ही
मांगता, वह ज्ञान देता,
एक उस का ही पसारा
पीर मन की हर रहा है !
प्रकटे वही हर शब्द से
मूल कारण शब्द का जो
गड़ी गहरी पीर उर में
गाँठ हर वह खोलता है !
कसक कुछ न कर सके
हर अधूरी चाह मन की,
दूर ले जाती उसी से
पूर्ण भीतर पल रहा है !
मन समर्पित हो सके तो
ढाल बन कर दे सहारा,
सौंप दें हर चाह उसको
रस सुरीला घोलता है !
बस ये दीपक जलता रहे । और शांति मन में घोलता रहे ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
वही आस का दीपक मन सुदृढ़ करता है !!बहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार !
हटाएंअत्यंत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, अनुपमा जी, सन्दीप जी, ओंकार जी व मीना जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंभीतर पालने वाला पूर्ण ही हमें सही राह पर चलने को प्रेरित करता है।
जवाब देंहटाएंसही है, स्वागत व आभार !
हटाएंये एक दीपक ही काफी उजल फैलाने में सक्षम है, बस बुझे नहीं ।
जवाब देंहटाएंमन में प्रकाश रहे तो राह स्वयं स्वयं को दिखाता है ...
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