आदमी
राहबर आये हजारों इस जहाँ में
आदमी फिर भी भटकता है यहाँ पर !
आदमी फिर भी भटकता है यहाँ पर !
बेवजह सी बात पर भौहें चढ़ाता
राह तकता है भला बन शांति की फिर
राह तकता है भला बन शांति की फिर
आदतों के जाल में जकड़ा हुआ पर
किस्से मुक्ति के सुनाता जोश भर कर
किस्से मुक्ति के सुनाता जोश भर कर
खुद ही गढ़ता बुत उन्हीं से मांगता
जाने कितने स्वांग भरता भेष धर कर
जाने कितने स्वांग भरता भेष धर कर
इस हिमाकत पर न सदके जाये कौन
हर युद्ध करता शांति का नाम लेकर !
हर युद्ध करता शांति का नाम लेकर !
उल्टे-सीधे काम भी सभी हो रहे
है रात-दिन जब मौत का जारी कहर !
है रात-दिन जब मौत का जारी कहर !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 18 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंइंसानी फितरत है, सबकुछ जानते- देखते हुए भी समझने के तैयार नहीं। कुछ लोगों के ह्रदय में तो लगता है जैसे मानवीय संवेदनाओं के लिए कोई जगह ही नहीं बनी है
जवाब देंहटाएंबहुत सही
खुद ही गढ़ता बुत उन्हीं से मांगता
जवाब देंहटाएंजाने कितने स्वांग भरता भेष धर कर ।
वाह .... आज के हालात और इंसान की सोच सबको कह दिया ।
विचारणीय प्रभावी पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी व अनुपमा जी !
जवाब देंहटाएंखुद ही गढ़ता बुत उन्हीं से मांगता
जवाब देंहटाएंजाने कितने स्वांग भरता भेष धर कर ।
बहुत ही सुन्दर सटीक एवं समसामयिक सृजन
वाह!!!
आदतों के जाल में जकड़ा हुआ पर
जवाब देंहटाएंकिस्से मुक्ति के सुनाता जोश भर कर
खुद ही गढ़ता बुत उन्हीं से मांगता
जाने कितने स्वांग भरता भेष धर कर ----वाह बहुत गहन लेखन।
सार्थक लेखन
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जवाब देंहटाएंखुद ही गढ़ता बुत उन्हीं से मांगता
जाने कितने स्वांग भरता भेष धर कर
इस हिमाकत पर न सदके जाये कौन
हर युद्ध करता शांति का नाम लेकर !..सत्य से साक्षात्कार साक्षात्कार करती उत्कृष्ट रचना ।