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गुरुवार, अगस्त 3

हर पगडंडी वहीं जा रही

हर पगडंडी वहीं जा रही

कोई उत्तर दिशा चल रहे
दक्षिण दिशा किन्हीं को प्यारी,
मंजिल पर मिलना ही होगा
हर पगडंडी वहीं जा रही !

भर नयनों में प्रेमिल आँसू
जब वे गीत विरह के गाते,
बाना ओढ़े समाधान का
तत्क्षण दूजे भी जुड़ जाते !

‘तेरे’ सिवा न कोई दूजा
कह कुछ मस्तक नहीं उठाते,
केवल खुद पर दृष्टि जिनकी
स्वयं को मीलों तक फैलाते !

कहनेवाले दो कहते हैं
राज ‘एक’ है जिसने जाना !
भेद नहीं करते तिल भर भी  
राधा, उद्धव में कभी कान्हा !


सोमवार, अक्टूबर 26

मौन की नदी

मौन की नदी

तेरे और मेरे मध्य कौन सी थी रुकावट
दिन-रात जब आती थी तेरे कदमों की आहट
तब राह रोक खड़ी हो जाती थी मेरी ही घबराहट !
कहाँ तुझे बिठाना है, क्या-क्या दिखलाना है
बस इसी प्रतीक्षा में... दिन गुजरते रहे
तुझे पाने के स्वप्न मन में पलते रहे
एक मदहोशी थी इस ख्याल में
तू आयेगा इक दिन इस बात में
और आज वह आस टूटी है
हर कशमकश दिल से छूटी है
अब न तलाश बाकी है न जुस्तजू तेरी
कोई आवाज भी नहीं आती मेरी
खोजी थे जो.. कहीं नहीं हैं वे नयन
शेष अब न विरह कोई न वह लगन ! 

शुक्रवार, जून 12

राहे जिंदगी में

राहे जिंदगी में

न तू है न मैं बस एक ख़ामोशी है
इश्क की राह पर यह कैसा मोड़ आया

न ख्वाहिश मिलन की न विरह का दंश
राहे जिंदगी में कैसा मुकाम आया

एक ठहराव सा कोई सन्नाटा पावन
सफर में यह अनोखा इंतजाम पाया

पत्ते-पत्ते पर लिखी है कहानी जिसकी
हर श्वास पर उसी का अधिकार पाया 

गुरुवार, मई 9

अम्बर भी है बातें करता


अम्बर भी है बातें करता


एक सहज उल्लास जगायें
भीतर इक विश्वास उगायें,
प्रेम लहर अंतर को धोए
कैसे वह प्रियतम छिप पाए !

यहीं कहीं है देख न पाते  
व्यर्थ विरह के नगमे गाते,
यूँ ही हैं हम आँखें मूंदें
सम्मुख है जो नजर न आये !

वह रसधार बही जाती है
सूखी डाली हरी हुई है,
ओढ़ी थी जो घोर कालिमा
हटा आवरण ज्योति खिली है !

भीतर सरवर के सोते हैं
एक फसल उगी आती है,
चट्टानों को भेद शीघ्र ही
कल-कल स्वर से भर जाती है !

कैसा अनुपम प्रेम बरसता
कुदरत के कण-कण से झरता,
हवा कहे कुछ सहलाती जब
अम्बर भी है बातें करता !


शुक्रवार, जून 15

प्रतिबिम्बित होता वह हममें


प्रतिबिम्बित होता वह हममें


गीत मिलन के गाओगे गर
विरह का दुःख भी कट जायेगा,
उजले दिन की राह तको तो
घोर तमस भी छंट जायेगा !

संदेहों को गले लगाते
दुःख वीणा भी वही बजाते,
उर आशा, विश्वासी अंतर
बाधा पथ की हर ले जाते !

उस प्रियतम की हम छाया हैं
इक-दूजे पर सदा आश्रित,
प्रतिबिम्बित होता वह हममें
हमसे जुड़ने को है बाधित !

जो भेजे संदेशा उस तक
 वही लौटकर भी पायेगा,
क्यों न पाती प्रीत की लिख दें
भीतर कलरव बस जायेगा !

अपने ही भावों में रच दी
उसने जीवन गाथा सबकी,
जो चाहें फिर चुन ले आयें
राग प्रलय का, धुन जीवन की ! 

बुधवार, जून 13

तब भी तू अपना था


तब भी तू अपना था


तब भी तू अपना था
लगता जब सपना था,
दूर तुझे मान यूँ ही
नाम हमें जपना था !

चाहत कहो इसको
या घन विवशताएँ,
दोनों ही हाल में
दिल को ही फंसना था !

स्मृतियों की अमराई
शीतल स्पर्श सी,
वरन् विरह आग में
जीवन भर तपना था !

तेरी तलाश में
छूट गए मीत कुछ,
मिथ्या अभिमान में
पत्ते सा कंपना था !

पेंदी में छेद है
नजर मन पे पड़ी,
इसको भरते हुए
व्यर्थ ही खपना था ! 

रविवार, अप्रैल 29

वह जो कोई भी है


वह जो कोई भी है


कोई दूर रह कर भी
निकटतम हो सकता है !

दूरी प्रेम को बढ़ाती है
विरह की अनल में जल जाते हैं
उर के अवांछनीय तत्व,
जल ही जाते होंगे...
तभी तो विरह के आँसूओं का स्वाद
कुछ अलग होता है !


हो सकता है मुखरित कोई मौन होकर भी !

मौन भीतर के मौन को जगाता है
करता है परिचय अनंत से
शब्द की सीमा है, मौन असीम है
कोई चार शब्द कहे तो चार सौ की इच्छा होगी
पर मौन, एक पल का हो या एक पहर का
स्वाद दोनों का एक है !


कोई उदासीन होकर भी
रख सकता है ख्याल !

उदासीनता अंतर्मुखी कराती है
दूसरे का ध्यान मिले तो मन उसी पर जायेगा
अंतर्मुखता अपने आप से मिलाती है

अनंत उपकार हैं उसके
जो दूर है
मौन है
उदासीन है !


बुधवार, फ़रवरी 1

उड़ान भरता है प्रेम

उड़ान भरता है प्रेम

जैसे चन्द्रमा की ललक, उछाल देती है सागर को
ज्वार चढ़ता है जल तरंगों में
और स्वतः ही लौट आता है
अधूरे मिलन की कसक लिये...
वैसे ही मेरा मन ओ प्रियतम !
खिंचता है तेरी ओर
पर हर बार और प्यासा होकर
लौट आता है....सिमट आता है स्वयं में
भाटा लौटा न लाए अगर ज्वार को
क्या तहस-नहस न कर देगी लहरें
तोड़ती हुई सारी दीवारों को...

जन्म और मृत्यु दोनों पर टिकी है सृष्टि
मिलन और विरह दोनों पंख लगा कर
उड़ान भरता है प्रेम
ऊँचे आकाश में....

जब थाप पड़ती है
नृत्य की  सधे हुए कदमों से
वही आगे गए कदम पीछे भी लौटते हैं
गति, लय युक्त हो तभी मोहती है
आरोह के बाद अवरोह जरूरी है
वैसे ही तू मिल कर बिछड़ता है...पर पुनः मिलने के लिये !