नया वर्ष दस्तक देता है
धरती ने की पूर्ण सूर्य की, एक परिक्रमा देखो और
बीत गयीं कुछ अमावसें व, जगीं पूर्णिमाओं की भोर !
पुनः ली करवट ऋतु चक्र ने,
सहज
पुकारे है जीवन
हुई शोख रंगत फूलों की, सुन भ्रमरों की बढ़ती गुंजन !
अनल गगन की नव रश्मि से, हम भी तो भीतर सुलगा लें
भरकर भीतर नई ऊष्मा, कुहरा मन का छंट जाने दें !
करें पूर्ण जो रहा अधूरा, जो छूटे संग उन्हें ले लें
धूल सा झाड़ें जो अनचाहा, तज अतीत हल्के हो लें !
उम्मीदों की धूप जगाएं, ख्वाब भरें सूनी आँखों में
रब ने दी जिन्दगी जिनको, न्याय मांगते पर राहों में !
प्रेम जग दिलों में उनके, लोभ, स्वार्थ जहाँ है भारी
नये वर्ष में यही प्रार्थना,
कोई
न भूखा, न लाचारी !
नहीं घुले जहर मिट्टी में,
हों
निर्मल नदियों के जल
शुद्ध हवाएं, कटें न जंगल,
तंग
न हो किसी का दिल !
बेवजह गमजदा आदमी, जागे वह खुद को पहचाने
नहीं गुलामी करे किसी की, आजादी का सुख भी जाने !
एक नयी आस्था भीतर, जीवन का आधार बने
जीत सत्य की ही होगी, पुनः यही हुंकार उठे !
भय से नहीं प्रेम से जोड़ें,
शुभ
संस्कृतियाँ पुनः खिलें
नया वर्ष दस्तक देता है, खुशियों की सौगात मिले !