रविवार, जून 2

भूटान की यात्रा -२


भूटान की यात्रा -२ 


भूटान में पर्यटकों का आना १९७४ में आरम्भ हुआ, जब यहाँ के चौथे राजा जिग्मी सिंग्वाई वांगचुक का राज्याभिषेक हुआ था. इन्होने ही देश को ग्रॉस नेशनल हैप्पिनेस GNH का सिद्धांत दिया. इस सिद्धांत के अनुसार देश के आर्थिक विकास की तुलना में लोगों की ख़ुशी ज्यादा जरूरी है. भूटान की  विकास की परिकल्पना के आधार पर यूएन ने २० मार्च को 'विश्व प्रसन्नता दिवस' भी घोषित किया है. आज भूटान में वर्ष भर पर्यटक आते हैं, यहाँ का प्राकृतिक वातावरण, शुद्ध हवा और सुन्दरता सभी को आकर्षित करती है. साठ वर्ष की आयु होने पर चौतींस वर्षों के शासन के बाद राजा ने स्वयं ही अपने पुत्र को राजगद्दी पर बैठा दिया. पांचवे राजा जिग्मी खेसर वाम्ग्येल एक दार्शनिक, सुधारक तथा आध्यात्मिक व्यक्ति थे, जिन्होंने देश में कितने ही सुधार कार्य किये. २००८ में प्रजातंत्र की स्थापना करके जनता को देश के विकास में भागीदार ही नहीं बनाया, आत्मनिर्भर बनाया. भूटान की जनता इन्हें ईश्वर की तरह मानती है. भूटान ही विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जहाँ लोकतंत्र के लिए कोई आन्दोलन नहीं हुआ, जनता को इसके योग्य बनाया गया और उन्हें उपहार स्वरूप इसे प्रदान किया गया.

आज थिम्फू में तीसरा दिन है, प्रातः भ्रमण, प्राणायाम और स्वादिष्ट नाश्ता करने के बाद हम दर्शनीय स्थल देखने निकले. ड्राइवर नीमा अपनी नई टोयोटा के साथ मौजूद था. निकट स्थित एक अन्य होटल से तीन सहयात्रियों को लेकर हम सबसे पहले भूटान की अति प्राचीन मोनेस्ट्री जिसे यहाँ की भाषा में द्जोंग कहते हैं, देखने गये. मठ के मुख्य कक्ष में संस्थापक की विशाल मूर्ति है. कक्ष को रंगीन झंडियों, चित्रों, पुष्पों आदि से सजाया गया था. एक कक्ष में बुद्ध की विशाल मूर्ति भी वहाँ पर थी. आज बुद्ध का महा परिनिर्वाण दिवस होने के कारण लोगों का एक बड़ा हुजूम दर्शन करने आया था. हमने भी परिक्रमा में भाग लिया. सारा वातावरण उत्सव व प्रसन्नता से भरा था. कुछ लडकियाँ और लड़के सभी को फलों के रस के पैकेट्स मुफ्त बांट रहे थे. इसके बाद हम आधुनिक भूटान के निर्माता तीसरे राजा के स्मरण में बने स्मारक को देखने गये. वहाँ भी हजारों भूटानी अपने-अपने परिवार सहित पूजा कर रहे थे. सभी अपनी पारंपरिक वेश भूषा में थे. पुरुषों के वस्त्र को घो तथा महिलाओं की पोषाक को यहाँ कीरा कहते हैं. कुछ बौद्ध साधक पाठ कर रहे थे. यहाँ घंटो तक लोगों की भीड़ आती रही और परिक्रमा बिना रुके चलती रही.  

अगला पड़ाव था 'बुद्धा पॉइंट' जो एक विशाल पर्वत को काटकर पन्द्रह वर्ष पूर्व ही बनना आरम्भ हुआ है. हांगकांग. चीन तथा सिंगापुर की सहायता से बना यह विशाल स्थल दूर से ही नजर आता है. लोगों की विशाल भीड़ यहाँ भी थी. दोपहर के भोजन के बाद हम 'टाकिन जू' देखने गये. बकरी का सिर और बैल का धड़ मिलाकर जैसे यह अद्भुत प्राणी बना है. इसके जन्म की अनोखी कथा यहाँ प्रचलित है. होटल के निकट ही एक बुद्धा पार्क में कुछ समय बिताकर हम होटल लौट आये. कल सुबह पुनाखा के लिए रवाना होना है.
क्रमशः

शनिवार, जून 1

भूटान की यात्रा


भूटान की यात्रा- १ 

आज 'थिम्फू' में हमारा पहला दिन है. सुबह साढ़े छह बजे जब कोलकाता हवाई अड्डे पहुँचे, तब तक ड्रुक एयर का काउन्टर नहीं खुला था. कुछ देर बाद हलचल आरम्भ हुई और औपाचारिक कार्यविधियों के बाद नौ बजे जहाज ने उड़ान भरी. एक घंटे की आरामदायक यात्रा के बाद भूटान के 'पारो' नामक स्थान पर पहुँचे, उस समय स्थानीय समय था साढ़े दस, यानि यहाँ की घड़ियाँ भारत की घड़ियों से  आधा घंटा आगे हैं. हवाई अड्डा काफी खुला है और इसकी साज-सज्जा किसी बौद्ध मन्दिर जैसी है. बाहर निकलने से पूर्व ही हमने मोबाईल फोन में स्थानीय सिमकार्ड डलवा लिया था. 'मेक माय ट्रिप' की तरफ से गाइड एक बड़ी गाड़ी लेकर आया था. हम दोनों के अलावा एक बौद्ध दम्पति तथा उनकी पुत्री, जो मेडिकल की छात्रा है, भी हमारे साथ थे. एक घंटे की सड़क यात्रा के बाद हम भूटान की राजधानी 'थिम्फू' पहुंच गये. सहयात्रियों को उनके होटल में उतार कर हम 'मिगमार' नाम के होटल पहुँचे, जिसकी दीवारें पीले रंग से रंगी हैं, सुंदर चित्र व बेलबूटों से सजी हैं. बाहर फूलों का बगीचा है, और होटल काफी बड़ा है. दोपहर का भोजन हल्का व सुपाच्य था, कुछ देर विश्राम करके हम स्थानीय बाजार देखने गये. यहाँ हस्तकला के सामानों से भरी अनेकों दुकानें हैं.

आज दूसरे दिन हम 'थिम्फू' के दर्शनीय स्थलों को देखने गये, उससे पूर्व सुबह जल्दी उठकर होटल की दायीं ओर प्रातः भ्रमण के लिए निकले. यहाँ पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए काफी चौड़े मार्ग बने हैं, जिसपर सुबह-सुबह कुछ लोग दौड़ भी रहे थे. हवा ठंडी थी, जैकेट को कान तक ढककर हम चारों ओर के सुन्दर पर्वतों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे. साढ़े नौ बजे गाइड 'पेलडन' के साथ ड्राइवर अपनी गाड़ी लेकर आ गया. हमारा पहला पड़ाव था, राष्ट्रीय ‘आर्ट एंड क्राफ्ट सेंटर’. गाइड ने बताया कक्षा दस उत्तीर्ण करने के बाद कोई भी विद्यार्थी इस संस्था में आकर चित्रकला, मूर्ति कला, कढ़ाई, काष्ठ कला आदि सीख सकता है. कुछ कोर्स तीन वर्ष के हैं तथा कुछ कोर्स छह वर्ष के लिए हैं. यहाँ से दक्षता प्राप्त करने के बाद छात्र-छात्राएं अपना निजी व्यवसाय आरम्भ कर सकते हैं. भूटान की हस्तकला विश्वप्रसिद्ध है. बौद्ध चित्रकला तथा वास्तुकला अपनी सूक्ष्म कारीगरी, सुंदर आकृतियों तथा रंगों के लिए जानी जाती है. हमने कई छात्रों को काम करते हुए देखा. इसके बाद हम बौद्ध साधिकाओं की एक संस्था देखने गये. जहाँ युवा तथा वृद्ध साधिकाएँ तथा बौद्ध साधक भी मन्त्र जाप आदि धार्मिक क्रियाकलापों में व्यस्त थे. वहाँ का वातावरण एक विचित्र उल्लास से भरा था. कुछ वृद्ध भिक्षुओं की तस्वीरें हमने उतारीं, उनके मुस्कुराते हुए चेहरे भूटान के बढ़े हुए हैप्पिनेस इंडेक्स  की गवाही दे रहे थे. टेक्स्टाईल म्यूजियम तथा क्राफ्ट बाजार हमारे अगले पडाव थे.

क्रमशः

बुधवार, मई 29

उसको खबर सभी की



उसको खबर सभी की

खोया नहीं है कोई भटका नहीं है राह
अपने ही घर में बैठा बस घूमने की चाह

जो दूर से भी दूर और पास से भी पास
ऐसा कोई अनोखा करता है दिल में वास

उसको खबर सभी की जागे वह हर घड़ी
कोई रहे या जाये बाँधे नहीं कड़ी

इक राज आसमां सा खुलता ही जा रहा
वह खुद ही बना छलिया खुद को सता रहा

नजरों से जो बिखरता उसका ही नूर है
कहता दीवाना दिल वह कितना दूर है

कोई फूल फूल जाकर मधुरस बटोरता है
मीठी सी इक डली बन वह राह जोहता है

सोमवार, मई 27

फिर फिर भीतर दीप जलाना होगा



फिर फिर भीतर दीप जलाना होगा


नव बसंत का स्वागत करने
जग को अपनेपन से भरने
उस अनंत के रंग समेटे
हर दर बन्दनवार सजाना होगा !

सृष्टि सुनाती मौन गीत जो
कण-कण में छुपा संगीत जो
आशा के स्वर मिला सहज ही
प्रतिपल नूतन राग सुनाना होगा !

अम्बर से रस धार बह रही
भीगी वसुधा वार सह रही
श्रम का स्वेद बहाकर हमको
नव अंकुर हर बार खिलाना होगा !

टूटे मत विश्वास सदय का
मुरझाये न स्वप्न हृदय का
गहराई में सभी जुड़े हैं
भाव यही हर बार जताना होगा !

बुधवार, अप्रैल 17

पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन



पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन  


टूट गया सुख स्वप्न, सत्य ने
जैसे ही पलकें खोलीं,
अंगडाई ले जागी कविता
शब्दों में सुवास घोली !

छूट गया दुःख भेद, हृदय से
 गीत विराग सरस गाया,
खनक उठी अनजानी कोई
कदमों में ताल समाया !

सिमट गया हर माज़ी पीछे
रिक्त हुआ दिल का दर्पण, 
पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन  
अभिनव महकाया उपवन !


सोमवार, अप्रैल 15

सुरमई शाम ढली




सुरमई शाम ढली


खग लौट चले निज नीड़ों को
भरकर विश्वास सुबह होगी !

बरसेगा नभ से उजियारा
फिर गगन परों से तोलेंगे,
गुंजित होगा यह जग सारा
जब नाना स्वर में बोलेंगे !

इक रंगमंच जैसे दुनिया
हर पात्र यहाँ अभिनय करता,
पंछी, पादप, पशु, मानव भी
निज श्रम से रंग भरा करता !

किससे पूछें ? हैं राज कई
कब से ? कहाँ हो पटाक्षेप,
बस तकते रहते आयोजन
विस्मय से आँखें फाड़ देख !

अंतर में जिसने प्रश्न दिए
उत्तर भी शायद वहीं मिलें,
कभी नेत्र मूँद हो स्थिर बैठ
मन के सर्वर में कमल खिलें !

बस खो जाते हैं प्रश्न, नहीं
उत्तर कोई भी मिलता है,
इक मीठा-मीठा स्वाद जहाँ
इक दीप अनोखा जलता है !

बाहर उत्सव भीतर नीरव
कुछ कहना और नहीं कहना,
अंतर से मधुरिम धारा का
 धीमे-धीमे से बस बहना !


गुरुवार, अप्रैल 4

राह पर मन की गुजरते


राह पर मन की गुजरते


आज जीलें अभी जीलें
जो कल कभी आया नहीं,
जिन्दगी ने गीत उसके
सुर साज पर गाया नहीं !

सुख समाया इस घड़ी में
हम जहाँ पल भर न ठहरे,
वह छुपा उस रिक्तता में
जिसे भरने में लगे थे !

अभी रौनक, रंग, मेले
पलक झपकी खो गये सब,
एक पल में जो सजे थे
स्वप्न सारे सो गये अब !

व्यर्थ की कुछ गुफ्तगू ही
कभी इसकी कभी उसकी,
राह पर मन की गुजरते
हर घड़ी बस कारवां ही !

चूकती जाती घड़ी हर
मिलन का पल बिखर जाता,
क्या मिला क्या और पाना
दिल यही नगमा सुनाता !
  


मंगलवार, अप्रैल 2

माया की माया


माया की माया

जो देख सकती है, वह आँख
नहीं जानती भले-बुरे का भेद
जो देख नहीं सकती, वह आत्मा 
सब जानती है, फिर भी गिरती है गड्ढ में !

जो सुन सकता है, वह कर्ण
नहीं जानता सच-झूठ का भेद
जो सुन नहीं सकती, वह आत्मा 
सब जानती है, फिर भी गिरती है भ्रम में !

देह और आत्मा के मध्य कोई है
जो नहीं चाहता आँख देखे वही जो भला है
श्रवण सुनें वही जो हितकर है
‘माया’ शब्द मात्र नहीं एक सत्ता है
जिसके बल पर चल रहा है
सृष्टि का यह खेल अनंत युगों से !

शुक्रवार, मार्च 29

इस उमंग का राज छुपा है



इस उमंग का राज छुपा है 


जाने क्यों दिल डोला करता
नहीं किसी को तोला करता,
जब सब उसके ही बंदे हैं
भेद न कोई भोला करता !

नयना चहक रहे क्यों आखिर
अधरों पर स्मित ठहरी कब से,
जन्मों का क्या मीत मिला है
थिरक रहे हैं कदम तभी से ?

रुनझुन सी बजती है उर में
गुनगुन सी होती अंतर में,
छुप-छुप किसके मिले इशारे
निकल गया दिल किसी सफर में !

टूटी-फूटी गढ़ी इबारत
हाल बयां क्योंकर हो पाये,
मीरा भी दिखा नहीं पायी
राम रतन नजर कहाँ आये !

गुरुवार, मार्च 28

जीवन मधुरिम काव्य परम का




जीवन मधुरिम काव्य परम का


फिरे सहज श्वासों की माला
मन भाव सुगंध बने,
जीवन मधुरिम काव्य परम का
इक सरस प्रबंध बने !

जगती  के इस महायज्ञ में
आहुति अपनी भी हो,
निशदिन बंटता परम उजास
मेधा ही ज्योति हो !

शब्द गूँजते कण-कण में नित
बांचें जान ऋचाएं,
चेतन हो हर मन सुन जिसको
गीत वही गुंजायें !

शुभता का ही वरण सदा हो
सतत जागरण ऐसा,
अधरों पर मुस्कान खिला दें
हटें आवरण मिथ्या !

उसकी क्षमता है अपार फिर
क्यों संदेह जगाएं,
त्याग अहंता उन हाथों की
कठपुतली बन जाएँ !

बुधवार, मार्च 27

दूर कोई गा रहा है





दूर कोई गा रहा है

कौन जाने आस किसकी
किस बहाने आँख ठिठकी 
प्रीत की गागर बना दिल

बेवजह छलका रहा है !

चढ़ हवाओं के परों पर
अनुगूँज मुड़ जाती किधर
कौन उस पर कान देगा

सुर मधुर बिखरा रहा है !

बद्ध लय ना टूटती है
अनवरत बहती नदी है
मिल गयी निज लक्ष्य से जब

मौन अब बस छा रहा है !



(अभी-अभी दूर बैठे एक पक्षी की आवाज खिड़की से भीतर आ रही थी, फिर अचानक बंद हो गयी.) 

शुक्रवार, मार्च 22

झर-झर झरता वह उजास सा


झर-झर झरता वह उजास सा 

कोई पल-पल भेज सँदेसे 
देता आमन्त्रण घर आओ
कब तक यहाँ वहाँ भटकोगे 
मस्त हो रहो, झूमो, गाओ !

कभी लुभाता सुना रागिनी 
कभी ज्योति की पाती भेजे
पुलक किरण बन अनजानी सी 
कण-कण मन का परस सहेजे !

कभी मौन हो गहन शून्य सा 
विस्तृत हो फैले अम्बर सा
वह अनन्ता अनंत  हृदय को 
हर लेता सुंदर मंजर सा ! 

स्मरण चाशनी घुलती जाये  
भीग उठे उर अंतर सारा
पोर-पोर में हुआ प्रकम्पन 
देखो, किसी ने पुनः पुकारा ! 

झर-झर झरता वह उजास सा 
बरसे हिमकण के फाहों सा,
बहता बन कर गंगधार फिर 
महके चन्दन की राहों सा ! 

कोई अपना आस लगाये 
आतुर है हम कब घर जाएँ
तज के रोना और सिसकना 
सँग हो उसके बस मुस्काएं !